रमतो बुआ
"रमतो बुआ"
एक बढ़िया शानदार परिवार गाँव में मुखिया जी की हवेली...ऐसा कोई न था गाँव में जो मुखिया जी को न जानता हो...गाँव का बच्चा बच्चा जानता था...
कहने को हवेली तो बहुत बड़ी थी...पर उसमें रहने वाले प्राणी मात्र चार ही थे.....
एक तो मुखिया जी नाम था जाधव सिंग, लेकिन सभी उन्हें मुखिया जी कहकर ही बुलाते थे.....
रौबदार व्यक्तित्व, दयालु, ईमानदारी, सभी तारीफ करते न अघाते...वक़्त जरुरत सबके काम आते...
दूसरी उनकी बड़ी विधवा बहू...जो कभी बाहर किसी को नज़र न आती थी.....
तीसरा छोटा बेटा मुखिया जी का... जिसकी अभी शादी नहीं हुयी थी......
और चौथी बुआ जी जो बाल विधवा थीं...मुखिया जी अपनी पत्नी के खत्म होने के बाद उन्हें ले आये
थे...अपनी बहिन को मानते भी बहुत थे......
वैसे तो बुआ जी का नाम जमुना बाई था, जहाँ जाती बैठकर रह जातीं...सो मुखिया जी कहते जहाँ जाती
हो रम जाती हो...सो कहने लगे रमतो बुआ को बुला लाओ....सो वे पूरे गाँव की रमतो बुआ जी हो गयीं....
रमतो बुआ घर में तो सबका ध्यान रखती ही थीं...
पूरे गाँव में किसी को कुछ जरुरत है...तो सबसे
पहले मदद करने पहुँच जातीं...एक बार रत्तू किसान
की खेलती हुयी मौड़ी पर निगाह पड़ गयी....
रंग एकदम सफ़ेद लालिमा लिए हुए...सुतवा नयन नक्श... लहराते घने काले बालों की गुथी हुयी चोटी में गुलाब का फूल...बस गयी रमतो बुआ के मन में......
घर आकर अपने भाई को बताया...बुआ ने बेटे शुभ को बुला कर राय जानना चाही....बेटा बोला बुआ जी आप मेरा अच्छा ही सोचेगीं कह कर रुम में चला गया....दूसरे ही दिन रमतो बुआ रत्तू किसान के यहांँ मिठाई के थाल, मेवा, ओर कपड़े लेकर पहुँच गयी... फिर इतने बड़े घराने में रिश्ता जो हो रहा था...सो शादी पक्की हो गयी.... अक्षय तृतीया का मुहुर्त भी रख लिया गया.....
खूब जोर शौर से शादी की तैयारियाँ हुयीं....
नियत तिथी में अक्षत तृतीया के दिन शादी भी हो
गयी...खूब स्वागत सत्कार हुआ...नयी बहू का....
सारे रीति-रिवाज करवाये रमतो बुआ ने....
पूरे गाँव में चर्चा रत्तू के तो भाग खुल गये...इतते
बड़े खानदान में मौड़ी को ब्याह हो गओ....
रमतो बुआ गौरी बहू का बहुत ध्यान रखतीं....
बड़ी बहू के कोई संतान नहीं थी...सो वो भी सारा
प्यार गौरी पर लुटाती......
कुछ ही दिन में गौरी सबकी चहेती बन गयी....
ऐसे ही हंसी खुशी में कब समय निकल गया...
पता ही न चला...शादी को दो वर्ष हो गये बहू की
गोद हरी नहीं हुयी....बुआ जी बोली तुझे बड़ी चिंता है...
अभी उसकी उमर ही क्या है.....
चिंता मत कर भर जायेगी गोद भी समय आने पर..
मुखिया जी को तो चिंता सता रही थी... अपने वंश की...बड़ी बहू भी नि:संतान है.....
आज शुभ को काम से शहर जाना था...सो वो सुबह
सुबह ही चला गया....दो दिन बाद ही उसे वापिस भी आना था...हफ्ता भर निकल गया...सब बहुत परेशान थे...मुखिया जी आज शहर जाने की तैयारी में थे....
तभी हवेली के सामने पुलिस की गाड़ी और एक
एम्बुलेंस आकर रुकी......
मुखिया जी जल्दी से बाहर आये...क्या बात है...?
.पहले आप अंदर चलें...आराम से बैठ कर बात
करते हैं.....
फिर बैठक में बैठा कर मुखिया जी को वाकिया बताया...कैसे एक्सीडेंट हुआ...तुरंत अस्पताल लेकर गये....आपको खबर करने का.... समय ही नहीं मिल पाया....बस आपके साईन चाहिए....अपने बेटे की
खबर सुनते ही...मेरा तो वंश ही खत्म हो गया....
अब बेटे की अंतिम बिदाई की तैयारी होने लगी....
बहू को बुलाया गया....उसके सारे जेवर उतरवा दिये गये....सुहाग की निशानी मिटा दी गयीं....
मुझे मेरे जेवर दे दो मुझे पहनना है....बुआ जी
भारी दुखी....हाँ बेटा दे देंगे....अभी कुछ दिन रुक
जा... फिर पहन लेना......
बुआ जी भी उसी दौर से गुजरीं थीं...सो वे उसका
दुख अच्छे से समझ रहीं थीं....
मुखिया जी...रमतो तुम क्यों..!! ऐसे बैठी रहती हो
जाओ घूमो फिरो....नहीं मेरा मन नहीं लगता.....
अरे मेरा तो वंश ही मिट गया...
चुप कर...बंस बंस लगा रखी है...बहू का दुख नहीं
दिख रहा तुझे.....पहाण सी जिंदगी उसकी...कैसे काटेगी........
आज सवा महिने बाद उसके बापू लिवाने आये थे,
सो मैं नहीं चलूंगी...मुझे दूसरा गुड्डा लाकर दो....
बापू चिल्लाये उसके ऊपर...ये कोई गुड्डा गुडियों का
खेल नहीं है....तेरा दूल्हा नहीं रहा.....अब नहीं आ
सकता...अब तुझे ऐसे ही रहना पड़ेगा.....
बुआ जी बोलीं...बच्ची है अभी... धीरे धीरे समझ जायेगी...अभी चली जा बेटा...जल्दी ही बुला लूंगी,
बुआ जी के मन में तो तभी से उथल पुथल मच गयी,
जब गौरी ने बापू से बोला मुझे दूसरा गुड्डा लाकर दो...
पर उनके मन में क्या चल रहा है...किसी को भनक
भी नहीं लगने दी...वो बस इंतज़ार कर रहीं थीं....
कब साल भर हो जाये.......
बुआ जी गयीं रत्तू के घर उसको...लिवा ले आयीं...
बड़ी बहू गौरी को ध्यान से रखियो... मैं पास
के ही गाँव में जा रहीं हूँ...शाम तक लौट आऊँगी...
दूसरे दिन बुआ जी हवेली को सजवा रहीं थीं....
घर में तरह तरह के पकवान बन रहे थे.....
मुखिया जी का माथा ठनका.....
आखिर पूछ बैठे...ये सब क्या हो रहा है...?
मुझे भी कुछ बताओगी....?
तो सुन आज मेरी बेटी की शादी है...मैं अच्छे से
जानती हूँ.....विधवा का जीवन कैसा होता है.....
आज तो हम लोग हैं...कल उसका क्या होगा...?
समाज उसका जीना मुश्किल कर देगा.....
गिद्ध जैसी नजरें कचोटेंगीं उसको.....
तब कौन सहारा देगा उसको बोल...?
है जबाव कोई तेरे पास!!
और समाज का क्या है!!कोई कुछ नहीं बोलेगा....
जब बड़े लोगों के यहाँ रीति रिवाजों के बंधन तोड़े
जाते हैं...तो कोई ऊँगली नहीं उठाता......
चल उठकर बेटी की शादी में लग जा....
आज दुल्हन की तरह सजी है गौरी.....
मंडप में उसके बापू की आँखों से झर झर आँसू
बह रहे हैं...पर ये खुशी के आंसू......।
रजनी कटारे
कहानीकार-रजनी कटारे
जबलपुर ( म.प्र.)
Seema Priyadarshini sahay
13-Nov-2021 05:18 PM
बहुत बेहतरीन
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Niraj Pandey
12-Nov-2021 09:16 AM
बहुत ही शानदार कहानी
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Zakirhusain Abbas Chougule
11-Nov-2021 09:42 PM
बहुत सुंदर
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